समय समय की बात है, एक समय था जब हमारे देश में कवि सम्मलेन मनोरंजन का सबसे उत्तम साधन माना जाता था | कवि सम्मलेन आयोजित करना तथा कविता को ध्यान पूर्वक सुनना शौक हुआ करता था | समय बदला और मनोरंजन का स्वरुप भी बदला, अब स्टेज पर विद्वान कवियों की जगह फ़िल्मी कलाकारों ने ले ली , फिल्म में किसी और के लिखे गीत को गानेवालों ने वास्तविक पैर जमा लिए|
पर एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी ” अंडे चोरी हो जाने से मुर्गी बाँझ नहीं हो जाती “, समाज के प्रतिष्ठित वर्ग तब भी कवि सम्मलेन को ही महत्त्व देते रहे क्यूंकि उन्हें पता था की कविता, गीत, ग़ज़ल और मुक्तक इत्यादि ऐसी विधा हैं जो हर रोज़ एक नया रंग लेकर पनपती है और सदा के लिए अमर हो जाती है |
कोई फ़िल्मी कलाकार या संगीतकार उतने ही प्रकार के गीत सुना सकता है जितने उसने फिल्म में गाए हैं | जबकि कवि समाज के गीतकार के पास नवीन रचनाओं का भण्डार होता है |
जब किसी इवेंट में फ़िल्मी कलाकार को बुलाया जाता है तो एक ही प्रकार का मनोरंजन मिलता है | जबकि कवि के समूह में आपको हर रस का आनंद दिया जाता है कभी प्यार भरा गीत, कभी संजीदगी से पिरोए ग़ज़ल, तो कभी गुदगुदाती हास्य रचनाए | कवि सम्मलेन का विचार इतना विस्तृत रहा है की आप किसी भी मौके पर कवियों के एक समूह को बुलाकर मौके के हिसाब की कविताओं से लोगों तक नए विचार पहुंचा सकते हैं |
आज हास्य कवि सम्मलेन फिर से ट्रेंड बन गया है, धीरे-धीरे हर वर्ग को समझ आ रहा है की ऐसा मनोरंजन अद्वितीय है | अगर आप भी कभी कोई इवेंट ऑर्गनाइज़ करें तो एक बार कवि समूह को आमंत्रित करके देखें, आप उनकी संगत और परफॉरमेंस से इतने प्रभावित होंगे की हर बार उन्हें ही बुलाएंगे |